अनंत दर्द और सूखा गला आपको बेचैन कर देंगे और आपकी नजर पनिया जाएगी, फिर सिर में उठता दर्द आपको आराम करने के लिए मजबूर करेगा, आप भी दर्द से निपटने के लिए सर पर हाथ रखे हुए आंख बंद करेंगे और फिर शायद आप अपने अगले जन्म में ही उठेंगे। एक बिच्छू का डंक अगर आपको लग जाए तो वो इतना भयानक होता है की इन्सान बिना पानी मौत के गर्त में चला जाता है कहते है-

“काल का डंक लगा पैरन में
नील पड़ गया जी बैरन में”

अर्थात अगर किसी बिच्छू ने काम लायक जहर आपके अंदर प्रवेश करा दिया तो आपकी मौत ऐसे होगी जैसे आप किसी बंजर भूमि में पानी की तलाश करते करते शहीद हो गए।

परंतु भारत में एक ऐसी भी जगह है जहां बिच्छुओं के अनगिनत डंक तो हैं लेकिन जहर नही चढ़ेगा, एक ऐसी जगह जहां बिच्छू डंक नही मारते हैं बल्कि करते है आपके लिए दुआ देखिए बिच्छुओं का एक ऐसा संसार जहां बिच्छू बनेंगे आपके दोस्त जानिए इस ब्लॉग में।

अमरोहा- बात करें अगर अमरोहा के प्राचीनतम और पौराणिक इतिहास और दौर की तो द्वापर युग में यह अंबिकानगर के नाम से पहचाना जाता था। पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार इसकी स्थापना आज से लगभग 5,000 वर्ष पूर्व हस्तिनापुर के राजा आम्रहग्रोह ने की थी जो पांडवों के वंशज थे, और संभवतः उन्हीं के नाम पर इस नगर का नाम भी अमरोहा पड़ा।

इतिहासकार ये भी बताते है की पहले ये नगर, द्वापर के प्राचीन नगर पांचाल नगर का हिस्सा था जो कौरवों के आधीन था, लेकिन वक्त की रेत गर्दिश उड़ाती गई इतिहास बदलते गए और कहानियां भी।

हजरत विलायत शाह दरगाह का इतिहास – अमरोहा में करीबन 1600 ईसवी के आस पास एक वली शाह नसरुदीन लोगों के बीच राज करते थे, वो खुद को आदम के करीबी और अल्लाह का दूत बताते थे इसलिए वहां अल्लाह का कोई भी बड़ा अगर लोगों की भलाई के लिए या उस जगह नेकी करने पहुंचता था तो शाह नसरुद्दीन उसको श्राप दे देते थे। परंतु लोगों को ये भी पता था की ये दूत होता तो लालची न होता लेकिन वक्त के आगे सब खामोश ही रहना बेहतर समझते थे।

कहा जाता है की अरब से नबी के आदेश पर विलायत शाह जी ने अमरोहा को अपनी धरती चुना, तब शाह नसरुद्दीन को ये बात खटकती रही और उसने कई बाद विवाद किए गांव के लोग इस भंवर में फस गए की कौन सही है कौन गलत है, एक दिन शाह नसरुद्दीन ने सबसे आखीर में शाह विलायत को शाप दिया कि उनके निवास स्थान में सांप बिच्छु रहेंगे और गांव के खोये हुए घोड़े, गाय आदि जानवार उनके यहां ही पाये जायेंगे। इस पर शाह विलायत ने ये चमत्कार किया कि उन्होंने घोषणा कर दी कि उनके इलाके में रहने वाले सांप बिच्छु किसी को नहीं काटेंगे और जानवार आसपास लीद नहीं करेंगे। हैरानी की बात ये कि उनके दोनों आदेश अल्लाह द्वारा स्वीकृत हो गए।

बिच्छुओं की दरगाह क्यों कहलाई –

लोगों ने देखा कि वली हजरत विलायत अली शाह ने जिस जंगल के स्थान में अपने लिए आसान बनाया वो एक भयानक जगह थी, तो गांव वालों ने बाबा को समझाया की वो स्थान खतरनाक कीट पतंग एवं जानवरों से भरा है आपकी जान को खतरा हो सकता है, तब शाह जी ने बताया की मुझे क्या इस पूरे क्षेत्र में कोई भी जहरीला जानवर आपको नुकसान नहीं पहंचाएगा और बाहर भी पहुंचाया तो आप मेरे पास आ जाना फिर कभी आपको कोई जहर नही चढ़ेगा।

उसके बाद उनके अनुयायियों ने मिल कर उसी स्थान पर धीमे धीमे एक दरगाह का निर्माण कर दिया चूंकि जहां जहां खुदाई हो केवल सांप और बिच्छू निकले हर तरफ और खुद बाबा के कपड़ों और शरीर पर बिच्छुओं का राज था इसलिए दरगाह को हजरत विलायत अली शाह के साथ साथ लोग बिच्छू वाली दरगाह भी कहने लगें।

क्या है रहस्य बिच्छू वाली दरगाह का – कई बार लोगों को जब किसी जहरीले कीट सांप बिच्छु या किसी जानवर ने डस लिया, काट लिया या डंक मारा तो लोगों ने इस दरगाह में शरण ली जिसके बाद उनका जहर उतर गया, तब से लेकर आज तक यहां लोग बिच्छुओं के लिए दुआ पढ़ते है साथ ही यहां मौजूद इस काले काल को अपने हाथों में लेते है खिलाते हैं और पुनः उनके स्थान पर छोड़ देते हैं, कहते है यहां के बिच्छु अगर आपके बदन पर चल जाएं तो जीवन भर आपको कोई जहर नही चढ़ेगा, जिसके बाद आज के युग में भी जिसको इस दरगाह की शक्ति का अंदाजा है वो यहां जरूर आता है।

विज्ञान इस विषय में क्या कहता है – जब से साइंस एंड टेक्नोलॉजी ने दुनिया में अपनी हनक जमाई है तब से साइंस ने खुद को सर्वश्रेष्ठ माना है शुरुआत में तो विज्ञान ने , चमत्कार, रहस्य, भगवान, भूत प्रेत, और शक्तियों पर भी हजारों गलत मिथ्याएं कहीं और विज्ञान को इनसे जोड़ने का प्रयास किया परंतु बड़े बड़े तुर्रमों ने जब भारत से और प्रकृति से पंगा लिया तो इनको समझ आया कि प्रकृति अनोखी और भारत अनोखा है।

अमरोहा की खबर जब विज्ञान के सैनिकों को लगी तो वो यहां भी पहुंचे लेकिन कुछ भी सही से समझ न सके, इसके बाद कई शोधकर्ता, वैज्ञानिकों ने इस घटना को अपना चश्मा पहनाया और कहां की ये एक जंगल का इलाका था जहां पर ठंडक के चलते यहां बिच्छुओं का इलाका था और बाबा के पास कुछ ऐसा एलिमेंट रहा होगा जिससे बिच्छू इनपर हमला करने के बजाय नसे में या मूर्छित हो जाया करते होंगे आज भी इस स्थान पर ठंडक है और तमाम प्रकार के लोभान अगरबत्ती परफ्यूम इत्यादि की महक से कन्फ्यूज्ड ये बिच्छू किसी को नही काटते, और उनके हिसाब से ये लोगों को जहर न चढ़ने की बात केवल मिथ्या मात्र थी।

लेकिन बाद में वैज्ञानिकों और रिसर्चर्स को इस चमत्कार पर भरोसा तब हुआ जब उन्होंने देखा कि जो बिच्छु अंदर अच्छा व्यवहार कर रहे थे वो बाहर जाते ही अपने असली रूप में आ जाते है, तब से रिसर्चर्स और वैज्ञानिक अभी भी अपनी पैनी नजर मजार के रहस्यों में टिका रखें है।