भगवान् कृष्ण ने जब देह त्याग किया तो उनका अंतिम संस्कार किया गया, उनका सारा शरीर तो पंचतत्व में विलीन हो गया लेकिन उनका दिल अभी भी धड़क रहा था और वो बिलकुल सुरक्षित था, लोककथा के अनुसार वो दिल पंडा ने जल में बहा दिया था और वो दिल तत्कालीन उड़ीसा के राजा को एक कपड़े में तैरता हुआ मिला था, जिसके बाद एक रात उड़ीसा के महाराजा को सपने में श्री कृष्ण ने उनका दिल किसी मूर्ति में स्थापित करने के लिए कहा था, राजा ने ये बात अनदेखी कर दी थी कुछ समय पश्चात स्वयं एक बढ़ई राजा के पास आए थे और उन्होंने इस दिल के लिए एक मूर्ति बनाने की बात राजा के सामने रखी थी, लेकिन उन्होंने ये शर्त रखी थी की जब तक मूर्ति बन न जाए और ये ब्रह्म पदार्थ मूर्ति में लगा न दिया जाए तब तक कक्ष में कोई भी प्रवेश नहीं करेगा और यदि कोई प्रवेश करेगा तो उसकी मृत्यु तय है।
कई दिनों तक कमरे से ठोका पीटी की आवाजें आती रहीं और एक दिन आवाजें जब बंद हो गई तो राजा ने जांच के लिए कमरा खोला और पाया कि वो ब्रह्म पदार्थ एक मूर्ति के अंदर धड़क रहा था और वो मूर्ति जीवित नजर आ रही थी, माना जाता है की स्वयं भगवान विश्वकर्मा में वो मूर्ति आके बनाई थी और गायब हो गायब हो गए थे।
आज भी मूर्ति से दिल के धड़कने जैसी आवाजें भक्तो को सुनाई देती है और कहा जाता है की श्री जगरनाथ प्रभु की मूर्ति आज भी जीवित अवस्था में रहती है।
क्यों जगन्नाथ महाप्रभु को कहते हैं जीवित मूर्ति क्यों आते है हर साल लाखों भक्त यहां क्यों निकाली जाती है जगन्नाथ यात्रा आज शहर यार के साथ जानते है।
जगन्नाथ मंदिर के अनोखे रहस्य –
सोने की झाड़ू से होती है सफाई, जगन्नाथ भगवान के परिसर में खुद उड़ीसा के महाराज अपने परिवार के साथ आके आज भी रखरखाव देखते है साथ ही सोने की झाड़ू से खुद भी करते है सफाई।
महाप्रभु जगन्नाथ (श्री कृष्ण) को कलियुग का भगवान भी कहते है… पुरी (उड़ीसा) में जग्गनाथ स्वामी अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ निवास करते है… मगर रहस्य ऐसे है कि आजतक कोई न जान पाया।
हर 12 साल में महाप्रभु की मूर्ती को बदला जाता है,उस समय पूरे पुरी शहर में ब्लैकआउट किया जाता है यानी पूरे शहर की लाइट बंद की जाती है। लाइट बंद होने के बाद मंदिर परिसर को CRPF की सेना चारो तरफ से घेर लेती है… उस समय कोई भी मंदिर में नही जा सकता…
मंदिर के अंदर घना अंधेरा रहता है… पुजारी की आँखों मे पट्टी बंधी होती है, पुजारी के हाथ मे दस्ताने होते है… वो पुरानी मूर्ती से “ब्रह्म पदार्थ” निकालता है और नई मूर्ती में डाल देता है… ये ब्रह्म पदार्थ क्या है आजतक किसी को नही पता, इसे आजतक किसी ने नही देखा… हज़ारो सालो से ये एक मूर्ती से दूसरी मूर्ती में ट्रांसफर किया जा रहा है।
ये एक अलौकिक पदार्थ है जिसको छूने मात्र से किसी इंसान के जिस्म के चिथड़े उड़ जाए, इस ब्रह्म पदार्थ का संबंध भगवान श्री कृष्ण से है… मगर ये क्या है ,कोई नही जानता, ये पूरी प्रक्रिया हर 12 साल में एक बार होती है… उस समय सुरक्षा बहुत ज्यादा होती है…
मगर आजतक कोई भी पुजारी ये नही बता पाया की महाप्रभु जगन्नाथ की मूर्ती में आखिर ऐसा क्या है?
कुछ पुजारियों का कहना है कि जब हमने उसे हाथ में लिया तो खरगोश जैसा उछल रहा था, आंखों में पट्टी थी, हाथ मे दस्ताने थे तो हम सिर्फ महसूस कर पाए।
आज भी हर साल जगन्नाथ यात्रा के उपलक्ष्य में सोने की झाड़ू से पुरी के राजा खुद झाड़ू लगाने आते है।
भगवान जगन्नाथ मंदिर के सिंहद्वार से पहला कदम अंदर रखते ही समुद्र की लहरों की आवाज अंदर सुनाई नहीं देती, जबकि आश्चर्य में डाल देने वाली बात यह है कि जैसे ही आप मंदिर से एक कदम बाहर रखेंगे, वैसे ही समुद्र की आवाज सुनाई देंगी…
आपने ज्यादातर मंदिरों के शिखर पर पक्षी बैठे-उड़ते देखे होंगे, लेकिन जगन्नाथ मंदिर के ऊपर से कोई पक्षी नहीं गुजरता।
झंडा हमेशा हवा की उल्टी दिशामे लहराता है जिसको हर दिन बदलना बेहद आवश्यक है ऐसा माना जाता है को एक भविष्यवाणी में कहा गया था की ब्रह्म पदार्थ के उपर लहर रहे झंडे को अगर एक भी दिन नही बदला गया तो ऐसी मान्यता है कि मंदिर 18 सालों के लिए बंद हो जाएगा।
दिन में किसी भी समय भगवान जगन्नाथ मंदिर के मुख्य शिखर की परछाई नहीं बनती।
इसी तरह भगवान जगन्नाथ मंदिर के शिखर पर एक सुदर्शन चक्र भी है, जो हर दिशा से देखने पर उसका मुंह आपकी तरफ दिखता है।
भगवान जगन्नाथ मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए मिट्टी के 7 बर्तन एक-दूसरे के ऊपर रखे जाते हैं, जिसे लकड़ी की आग से ही पकाया जाता है, इस दौरान सबसे ऊपर रखे बर्तन का पकवान पहले पकता है।
भगवान जगन्नाथ मंदिर में हर दिन बनने वाला प्रसाद भक्तों के लिए कभी कम नहीं पड़ता, लेकिन हैरान करने वाली बात ये है कि जैसे ही मंदिर के पट बंद होते हैं वैसे ही प्रसाद भी खत्म हो जाता है।